What is Dhrupad ध्रुपद गायकी क्या है
Dhrupad
So far, it is difficult to ascertain when Dhrupad singing has started. But it is believed that King Man Singh has composed Dhrupad, but it is not entirely true that many people. It can be said that Raja Man Singh has promoted Dhrupad in a broader way. During Akbar’s time, Tansen and his master Swami Haridas Dagur, Nayak Baiju and Gopal etc used to sing Dhrupad.
Dhrupad is the song of serious nature. It has the force to stretch and finger in songs. Therefore, people say it is the mask song. It was more prevalent in the medieval. Nowadays, khayal gayaji has taken place of dhrupad.
Parts of Dhrupad
There are four parts of Dhrupad, Sthai, Antara, Sanchari and Aabhog. The words of most of them are of the BrajBhasha. They have priority of Veer, Shanti and Shringar. It is Sing in the CharTaal, BrahmTaal, SoolTaal, Tivra, Matt etc., these are the Taals of Pakhawaj. Singing of Dhrupad is with Pakhawaj. Dhrupad starts with alaap of Nom Tom. There is also four different parts of the Alaap. Alaap is in lay during it’s third part and speed of alaap gradually increases. This place starts the gesture with this place. Use of Gamak starts from this place.
There is no Khatka or Taan in Dhrupad, but Meend and Gamak is very useful in Dhrupad. The bandish of Dhrupad use to Sing after Alaap and then show different types of Laykari. The Laykari is to give special places in Dhrupad. Expanding of Laykari with bandish’s words with making different Bol is important part of Dhrupad. In ancient times, Dhrupad singers were called Kalawant. Nowadays, Dhrupad is sung mostly in the CharTaal.
ध्रुपद
अभी तक ये पता लगाना मुश्किल है कि ध्रुपद गायन कब से शुरू होगी हुई है। पर ऐसा माना जाता है कि राजा मान सिंग ने ध्रुपद की रचना की है, पर ये बात पूर्णतः सही नहीं मानते हैं बहुत लोग। ऐसे कहा जा सकता है की राजा मान सिंग ने ध्रुपद का विस्तार रूप से प्रचार किया है। अकबर के समय में तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागुर, नायक बैजू और गोपाल आदि ध्रुपद ही गाते थे।
ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कंठ और फेफरा पर बल पड़ता है। इसलिए इसे लोग मर्दाना गीत कहते हैं। ये मध्यकाल में ज़्यादा प्रचलित था। आजकल इसकी जगह ख़याल गायकी ने ले ली है।
ध्रुपद के भाग
अधिकांश ध्रुपद के चार भाग होते हैं, स्थाई, अंतरा, संचारी और अभोग। इसके शब्द अधिकतर ब्रजभाषा के होते हैं। इनमें वीर, शांति और शृंगार रस की प्राथमिकता होती है। यह चारताल, ब्रह्मताल, सूलताल, तिवरा, मत्त आदि तालों मे गाया जाता है। ये सब पखावज के ताल हैं। ध्रुपद की संगति पखावज के साथ होती है। ध्रुपद मे सबसे पहले नोम-तोम का विस्तार आलाप किया जाता है। अलाप के भी चार अंग होते है। नोम-तोम का आलाप अपने तीसरे अंग से लयबद्ध हो जाता है और उसकी गति धीरे धीरे बधाई जाती है। इसी स्थान से गमक का प्रयोग प्रारंभ होता है।
ध्रुपद मे खटके या तान के समान चपल स्वर-समूह नही लिए जाते हैं, बल्कि मींड और गमक का अधिक प्रयोग होता है। आलाप के बाद ध्रुपद की बंदिश गाते हैं और फिर विभिन्न प्रकार की लयकारियाँ दिखाते हैं। ध्रुपद में लयकारी को विशेष स्थान प्राप्त है। गीत की बंदिश को लेकर कम और उसके शब्दो को लेकर विभिन्न बोल बनाते हुए लयकारी का अधिक विस्तार करते हैं। प्राचीन काल में ध्रुपद गानेवाले को कलावंत कहा जाता था। आजकल ध्रुपद अधिकतर चरताल मे गाया जाता है।