Types of music (Indian classical) संगीत के प्रकार
There are two types of Indian music, Classical Music and Quote Music
Classical Music
It is very necessary to follow certain rules in classical music. Just as it is necessary to follow the rules of the Ragas, they have to live in the boundary of sur and rhythm. What type of song we are singing is sung by keeping it in mind and following its rules. If you do not do that and those who sing in the heart, then they will not become raag.
Quote music (Bhaav sangeet)
There is no rule or restriction like classical music in Bhav’s music. It is not necessary that the ears which are good to the ears should be done in accordance with the rules of raag, it is not necessary that they should be used as alap, tan, sargam etc. The main purpose of bhaav music is to entertain, sometimes it is necessary to take the help of classical music even in the sense of music. We call it Light Music.
Bhaav music is divided into three parts,
1. Movie songs or Filmi song
2. Folk music
3. Bhakti song
Now we understand these three
1. Movie songs or Filmi song
The song used in movies is called film song or film music. Movies mean only movie. This is also used in films and classical music is also used. In the film song, people take care of certain things, people try to record well before making the song and trying to make it very attractive.
2. Folk song or Lok geet
Lok songs have gone much in the village. A lot of songs are sung on the basis of tradition that has been going on for many years. Like: Songs of marriage are folk songs such as Teetha, Kajree, Alha, Biraha, Lori, Bowl, Mahia, Bhatiali, Manjhi etc. The nature of this song is simple. It is bound within some vowels, these rhythms are the main songs, people begin to clap when they listen to it.
3. Bhakti song
It does not bind like classical music. Those who are sung by God are called bhajans. People also use classical music to make the song popular sometimes.
भारतीय संगीत दो प्रकार के हैं, शास्त्रीय संगीत और भाव संगीत।
शास्त्रीय संगीत
शास्त्रीय संगीत में कुछ खास नियमों का पालन करना बहुत आवश्क होता है। जैसे रागों का नियम पालन करना जरूरी होता है, लय और ताल की सीमा में रहना पड़ता है। गीत का कौन सा प्रकार को हम गा रहे हैं ये ध्यान में रखकर और इसका नियम पालन करके गाया जाता है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं और जो दिल में आए गाते हैं तो वो राग नहीं बनेगा।
भाव संगीत
भाव संगीत में शास्त्रीय संगीत जैसा कोई नियम या बंधन नहीं होता है। जो कानों को अच्छा लगे वो भाव संगीत हुआ, इसमें जरूरी नहीं की राग का नियम के अनुसार ही गया जाए, ये भी जरूरी नहीं को आलाप, तान, सरगम प्रयोग किए जाए। भाव संगीत का मुख्य उद्दश्य है मनोरंजन करना, कभी कभी भाव संगीत में शास्त्रीय संगीत का भी सहारा लेना पड़ता है अच्छा लगने के लिए। इसे हम लाइट म्यूजिक भी कहते हैं।
भाव संगीत को तीन भागों में बांटा गया है,
१. चित्रपट संगीत या फिल्मी गीत
२. लोक संगीत
३. भजन गीत
अब हम ये तीनों को समझते हैं
1.चित्रपट संगीत या फिल्मी गीत
जिस गाने का प्रयोग फिल्मों में हुआ है उसे फिल्मी गीत या चित्रपट संगीत कहते हैं। चित्रपट मतलब ही है फिल्म। फिल्मों में भाव संगीत भी उपयोग होता है और शास्त्रीय संगीत भी। फिल्मी गीत में कुछ बातों का ख्याल रखते हैं लोग, गाना तैयार करने के पहले अच्छी तरह से रिकॉर्ड करना और बहुत आकर्षक बनाने की कोशिश रहती है।
2.लोक गीत
लोक गीत गांव में ज्यादा गया है। बहुत सालों से चले आ रहे परंपरा के आधार पर बहुत तरह के गीत गाए जाते हैं। जैसे: शादी के गीत, चैती, कजरी, अल्हा, बिरहा, लोरी, बाऊल, महिया, भटियाली, मांझी इत्यादि लोक गीत हैं। इस गीत का स्वभाव सरल होता है। इसको कुछ स्वरों के अंदर ही बांध कर गया जाता है, ये लय प्रधान गीत होते हैं, लोग इसको सुनते ही ताली बजाने लगते हैं।
3.भजन गीत
इसमें शास्त्रीय संगीत की तरह बंधन नहीं होता है। जो ईश्वर के गाए जाएं उसे भजन गीत कहते हैं। भजन गीत को अच्छा बनाने के लिए लोग शास्त्रीय संगीत का भी उपयोग कर लेते हैं कभी कभी।